शास्त्र के अनुसार कहाँ कहाँ मूत्र त्याग नहीं करना चाहिये.....
श्मशान में,गोबर पर,जल के भीतर ,मार्ग पर,वृक्ष की जड़ के पास ,घरों के आसपास,खम्भे के पास ,पुल पर,खेलकूद के मैदान में,मंच (मचान )के नीचे तथा भस्म (राख )पर भी मल -मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए । (विष्णु पुराण )
देवमन्दिर में या उसके पास,अग्नि में या उसके निकट ,पर्वत की चोटी पर,बाम्बी पर गड्ढे में ,भूसी में कपाल (ठीकरे या खप्पर )में,बिल में,अंगार (कोयले )पर और लकड़ी पर मल -मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए । (ब्रह्मवैवर्त पुराण )
अग्नि, सूर्य ,गौ ,ब्राह्मण ,गुरु ,स्त्री ,चन्द्रमा ,आती हुई वायु ,जल और देवालय -इनकी ओर मुख करके (इनके सम्मुख )मल -मूत्र का त्याग करने से बचना चाहिए । नियम पालन नही करने पर बुद्धि तथा आयु नष्ट हो जाती है । (चरक संहिता )
जल के भीतर की ,देवालय की,बांबी की,चूहे द्वारा इकठ्ठी की गई ,शौच से बची हुई ,रास्ते की,श्मशान -भूमि की,ऊसर -भूमि की,घर की दीवार से ली हुई और लीपने -पोतने के काम में लाई मिट्टी का उपयोग शौचकर्म में निषेध माना गया है । (विष्णु पुराण )
शास्त्र के अनुसार यदि संपूर्ण नदियों के जल से तथा पर्वत से प्राप्त होने वाली पर्वतीय मिट्टी से कोई मनुष्य मरण पर्यन्त वाह्य शुद्धि करे तो भी जिसका भाव ही शुद्ध नही है वह कभी भी शुद्ध नही हो सकता है । (स्कन्द पुराण )
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