विदेश यात्रा योग
आज के समय में अधिकतर जातकों या जातिकाओ को विदेश जाने की होड़ लगी रहती है। कोई शिक्षा के लिए, कोई व्यापार के, कोई स्थाई निवास के लिए तो कोई केवल घुमने-फिरने के उद्देश्य से, चाहे जीवन में एक बार ही सही विदेश जरूर जाना चाहता है.
आज मैं आपको विभिन्न लग्नानुसार विदेश यात्रा के योगो के बारे में अवगत करवाउंगा।
मेष लग्न और विदेश यात्रा योग
इस लग्न में यदि गुरु द्वादश भाव में व शुक्र दशम भाव में हो तो जातक या जातिका वायुयान के द्वारा विदेश यात्रा करता है। यदि मंगल शनि अथवा मंगल गुरु की युति अष्टम, दशम या द्वादश भाव में हो तो भी जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है। उपरोक्त के अलावा यदि बुध अष्टम या द्वादश भाव में हो या शनि षष्ठम, अष्टम या द्वादश भाव में हो या गुरु षष्ठम या द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा कर सकता है, किन्तु उसे लाभ होना तात्कालिक ग्रह गोचर की स्थिति पर निर्भर करता है.
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
वृष लग्न और विदेश यात्रा योग
यदि शनि द्वादश भाव में हो तथा शुक्र भी दशम या द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है, किन्तु शनि के नीच राशिगत होने पर यह यात्रा कष्टप्रद रहती है.
यदि गुरु, शनि और मंगल का परस्पर राशि परिवर्तन हो तो जातक या जातिका समुन्द्र पार जाने की योजनाऍ करता है।
यदि शुक्र षष्ठम, नवम या द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है।
यदि शनि तृतीय या षष्ठम या द्वादश भाव में तीन या चार ग्रहों साथ हो तो भी जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
मिथुन लग्न और विदेश यात्रा योग
शनि यदि द्वादश भाव में हो और शुक्र केंद्र में हो तो जातक या जातिका समुन्द्र पार की यात्रा करता है। मंगल अष्टम या द्वादश भाव में, शनि षष्ठम या द्वादश भाव में, शुक्र षष्ठम या अष्टम भाव में हो तो जातक या जातिका अनेक बार विदेश यात्रा करता है।
शुक्र दशम भाव में एवं बुध द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है।
कर्क लग्न और विदेश यात्रा योग
यदि गुरु द्वादश भाव में हो या शनि गुरु की युति षष्ठम या द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है।
बुध षष्ठम या अष्टम, शनि द्वादश भाव में या गुरु अष्टम या द्वादश भाव में हो और शुक्र केंद्र में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है।
यदि बुध लग्न में और चन्द्र द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है।
यदि मंगल शनि और बुध परस्पर एक दूसरे की राशियों में विराजमान हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
सिंह लग्न और विदेश यात्रा योग
यदि सूर्य शुक्र द्वादश भाव में युति करके बैठे हो व चन्द्र केंद्र में हो तो जातक या जातिका अनेक बार विदेश यात्राऐ करता है। द्वादश भाव में गुरु शनि की युति या दृष्टि सम्बन्ध हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है। जिससे उसे लाभ होता है।
मंगल यदि द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका की विदेश यात्रा तो होती है, किन्तु जातक या जातिका के लिए वह कष्टप्रद रहती है। जबकि षष्ठम भाव में स्थित मंगल लाभदायक यात्रा करवाता है।
यदि गुरु षष्ठम भाव में, शनि द्वादश भाव में तथा चन्द्र षष्ठम या अष्टम भाव में हो तो जातक या जातिका की विदेश यात्रा किसी धार्मिक या सामाजिक कार्यो से होती है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
कन्या लग्न और विदेश यात्रा योग
यदि शुक्र द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका की विदेश यात्रा होती है।
यदि मंगल दशम या द्वादश भाव में हो या सूर्य षष्ठम या अष्टम भाव में हो जातक या जातिका समुन्द्र पार की यात्रा करता है।
यदि सूर्य षष्ठम या अष्टम भाव में, मंगल षष्ठम या द्वादश भाव में तथा शुक्र षष्ठम या अष्टम या दशम भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है। यदि सूर्य व बुध द्वादश भाव में एक साथ हो तो जातक या जातिका की विदेश यात्रा होती है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
तुला लग्न और विदेश यात्रा योग
बुध यदि द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका निश्चित ही व्यापारी या उपनिदेशक के रूप में कई देशो के साथ अवरोध उत्पन्न करता है। क्योकि बुध को सानिध्य का दोष उत्पन्न हो जाता है।
यदि शुक्र द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका की विदेश यात्रा तो होती है, किन्तु यह यात्रा कष्टप्रद रहती है। जबकि शुक्र दशम भाव में हो तो यात्रा लाभदायक रहती है।
यदि गुरु अष्टम या द्वादश भाव में, शुक्र षष्ठम या द्वादश भाव में तथा बुध षष्ठम या अष्टम भाव में हो तो जातक या जातिका की विदेश यात्रा योग होता है। उपरोक्त के अलावा यदि दशम भाव में तीन या चार ग्रह एक साथ हो तो भी जातक या जातिका की विदेश यात्रा योग होता है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
वृश्चिक लग्न और विदेश यात्रा योग
यदि चन्द्र द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका खूब विदेश यात्रायें करता है, किन्तु साथ में शुक्र भी हो या शुक्र केंद्र त्रिकोण में हो तो यात्रायें लाभदायक रहती है।
यदि मंगल या बुध द्वादश भाव में हो तथा शुक्र षष्ठम या अष्टम भाव में हो तो जातक या जातिका को सामुद्रिक यात्रायें करने के अवसर प्राप्त होते है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
धनु लग्न और विदेश यात्रा योग
यदि चन्द्र नवम या द्वादश भाव में, सूर्य अष्टम या द्वादश भाव में तथा मंगल पंचम, अष्टम या नवम भाव में हो तो जातक या जातिका को विदेश यात्रायें करता है।
सूर्य चन्द्र या सूर्य मंगल या चन्द्र मंगल या सूर्य चन्द्र मंगल की युति या आपस में दृष्टि सम्बन्ध हो तो जातक या जातिका को विदेश यात्रायें करता है। यह यात्रा जल व वायु दोनों ही प्रकार के मार्गो से हो सकती है।
यदि गुरु अष्टम भाव में और चन्द्र लग्न भाव में हो तो जातक या जातिका जल मार्ग से यात्रा करता है। किन्तु उसके साथ कोई अन्य ग्रह हो तो यात्रा का स्वरुप बदल जाता है। गुरु नवम भाव में व सूर्य द्वादश भाव में हो तो भी यही फल होता है।
यदि शुक्र दशम भाव में सूर्य, चन्द्र, मंगल या गुरु से प्रभावित हो तो जातक या जातिका मात्र ऐशो-आराम, घूमने-फिरने अर्थात आनंद के लिए विदेश यात्रा है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
मकर लग्न और विदेश यात्रा योग
यदि तृतीय, षष्ठम व द्वादश भाव में तीन चार या इससे अधिक ग्रह हो तो जातक या जातिका अनेक बार विदेश यात्रायें करता है।
यदि अष्टम भाव में सूर्य केतु के साथ अन्य कोई एक या दो ग्रह हो या द्वादश भाव में गुरु केतु के साथ अन्य कोई एक या दो ग्रह हो तो जातक या जातिका विशेष उपलब्धियों के कारण विदेश यात्रायें करता है।
यदि सूर्य द्वादश भाव में और गुरु अष्टम भाव में या सूर्य नवम भाव में और बुध अष्टम भाव में या गुरु
नवम भाव में और बुध द्वादश भाव में. इन तीन प्रकार के योगादि में से एक भी योग हो तो जातक या जातिका को विदेश यात्रायें करने के अवसर मिलता है।
सूर्य शनि, बुध शनि या गुरु शनि का युति सम्बन्ध किसी ना किसी प्रकार से अष्टम भाव, नवम भाव या द्वादश भाव से हो तो जातक या जातिका को विदेश यात्रा करने का अवसर मिलता है।
केंद्र या त्रिकोण में षष्ठम, अष्टम, नवम या द्वादश भाव के स्वामियों के साथ हो तो जातक या जातिका को विदेश यात्रायें करने के अवसर मिलता है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
कुम्भ लग्न और विदेश यात्रा योग
जन्मपत्रिका के अष्टम, नवम, द्वादश या लग्न भाव में बुध, शनि या शुक्र, शनि या चन्द्र, शनि की युति हो तो जातक या जातिका को अनेकों बार विदेश यात्रायें करने का अवसर मिलता है। किन्तु उसे ये सौभाग्य 54-56 वर्षायु के बाद प्राप्त होता है।
बुध, शनि या शुक्र तीनो की युति या दृष्टि सम्बन्ध हो तो जातक या जातिका अनेकों बार विदेश यात्रायें करता है। तथा प्रत्येक यात्रा से उसे लाभ प्राप्त होता है।
यदि दशम भाव में शुक्र हो तो जातक या जातिका शौकिया तौर पर मौजमस्ती के लिए विदेश यात्रा करता है, लेकिन ये यात्रा सिमित होती है।
बुध यदि स्वग्रही हो तो वायुयान से यात्रा होती है। तथा शुक्र या चन्द्र स्वग्रही या उच्च के हो तो यात्रा समुन्द्र मार्ग से होती है।
मंगल द्वादश और शुक्र अष्टम भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है, किन्तु उसका कारण कोई रोग या अन्य कोई परेशानी होती है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
मीन लग्न और विदेश यात्रा योग
मंगल अष्टम या द्वादश भाव में, शुक्र नवम, दशम या द्वादश भाव में, शनि अष्टम या नवम भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है।
मंगल शुक्र या मंगल शनि या शुक्र शनि की युति केंद्र त्रिकोण में हो तो जातक या जातिका अनेकों बार विदेश यात्रायें करता है। मंगल शुक्र शनि इन तीनो की युति होने पर भी जातक या जातिका अनेकों बार विदेश यात्रायें करता है।
यदि चन्द्र अष्टम व शुक्र लग्न में हो तो जातक या जातिका अपने परिवार सहित मौजमस्ती के लिए विदेश यात्रा करता है। किन्तु कभी कभी ये यात्रा खतरनाक भी हो सकती है।
गुरु अष्टम, नवम या द्वादश भाव में हो शुक्र, मंगल, शनि लग्न भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा का शौकीन होता है। किन्तु यह यात्रा प्रायः धार्मिक या सामाजिक कारणों से होती है।
शुक्र यदि द्वादश भाव में हो तथा गुरु की युति या दृष्टि सम्बन्ध अष्टम नवम दशम या द्वादश भाव पर हो तो जातक या जातिका अनेकों बार विदेश यात्रायें करता है। यह यात्रा व्यावसायिक कारणों से होती है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
विशेष :- यदि जन्मपत्रिका में तीन या इससे अधिक ग्रह उच्च या स्वराशि या मित्र राशि के हो तो जातक या जातिका किसी ना किसी कारण से विदेश यात्रा करता है।
यदि केंद्र त्रिकोण के स्वामियों के बीच परस्पर दृष्टि, युति, स्थान परिवर्तन या विपरीत राजयोग बनाते हो तो भी जातक या जातिका को विदेश यात्रा के अवसर प्राप्त होते है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रह गोचर के योग पर निर्भर करता है।
आज के समय में अधिकतर जातकों या जातिकाओ को विदेश जाने की होड़ लगी रहती है। कोई शिक्षा के लिए, कोई व्यापार के, कोई स्थाई निवास के लिए तो कोई केवल घुमने-फिरने के उद्देश्य से, चाहे जीवन में एक बार ही सही विदेश जरूर जाना चाहता है.
आज मैं आपको विभिन्न लग्नानुसार विदेश यात्रा के योगो के बारे में अवगत करवाउंगा।
मेष लग्न और विदेश यात्रा योग
इस लग्न में यदि गुरु द्वादश भाव में व शुक्र दशम भाव में हो तो जातक या जातिका वायुयान के द्वारा विदेश यात्रा करता है। यदि मंगल शनि अथवा मंगल गुरु की युति अष्टम, दशम या द्वादश भाव में हो तो भी जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है। उपरोक्त के अलावा यदि बुध अष्टम या द्वादश भाव में हो या शनि षष्ठम, अष्टम या द्वादश भाव में हो या गुरु षष्ठम या द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा कर सकता है, किन्तु उसे लाभ होना तात्कालिक ग्रह गोचर की स्थिति पर निर्भर करता है.
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
वृष लग्न और विदेश यात्रा योग
यदि शनि द्वादश भाव में हो तथा शुक्र भी दशम या द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है, किन्तु शनि के नीच राशिगत होने पर यह यात्रा कष्टप्रद रहती है.
यदि गुरु, शनि और मंगल का परस्पर राशि परिवर्तन हो तो जातक या जातिका समुन्द्र पार जाने की योजनाऍ करता है।
यदि शुक्र षष्ठम, नवम या द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है।
यदि शनि तृतीय या षष्ठम या द्वादश भाव में तीन या चार ग्रहों साथ हो तो भी जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
मिथुन लग्न और विदेश यात्रा योग
शनि यदि द्वादश भाव में हो और शुक्र केंद्र में हो तो जातक या जातिका समुन्द्र पार की यात्रा करता है। मंगल अष्टम या द्वादश भाव में, शनि षष्ठम या द्वादश भाव में, शुक्र षष्ठम या अष्टम भाव में हो तो जातक या जातिका अनेक बार विदेश यात्रा करता है।
शुक्र दशम भाव में एवं बुध द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है।
कर्क लग्न और विदेश यात्रा योग
यदि गुरु द्वादश भाव में हो या शनि गुरु की युति षष्ठम या द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है।
बुध षष्ठम या अष्टम, शनि द्वादश भाव में या गुरु अष्टम या द्वादश भाव में हो और शुक्र केंद्र में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है।
यदि बुध लग्न में और चन्द्र द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है।
यदि मंगल शनि और बुध परस्पर एक दूसरे की राशियों में विराजमान हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
सिंह लग्न और विदेश यात्रा योग
यदि सूर्य शुक्र द्वादश भाव में युति करके बैठे हो व चन्द्र केंद्र में हो तो जातक या जातिका अनेक बार विदेश यात्राऐ करता है। द्वादश भाव में गुरु शनि की युति या दृष्टि सम्बन्ध हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है। जिससे उसे लाभ होता है।
मंगल यदि द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका की विदेश यात्रा तो होती है, किन्तु जातक या जातिका के लिए वह कष्टप्रद रहती है। जबकि षष्ठम भाव में स्थित मंगल लाभदायक यात्रा करवाता है।
यदि गुरु षष्ठम भाव में, शनि द्वादश भाव में तथा चन्द्र षष्ठम या अष्टम भाव में हो तो जातक या जातिका की विदेश यात्रा किसी धार्मिक या सामाजिक कार्यो से होती है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
कन्या लग्न और विदेश यात्रा योग
यदि शुक्र द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका की विदेश यात्रा होती है।
यदि मंगल दशम या द्वादश भाव में हो या सूर्य षष्ठम या अष्टम भाव में हो जातक या जातिका समुन्द्र पार की यात्रा करता है।
यदि सूर्य षष्ठम या अष्टम भाव में, मंगल षष्ठम या द्वादश भाव में तथा शुक्र षष्ठम या अष्टम या दशम भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है। यदि सूर्य व बुध द्वादश भाव में एक साथ हो तो जातक या जातिका की विदेश यात्रा होती है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
तुला लग्न और विदेश यात्रा योग
बुध यदि द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका निश्चित ही व्यापारी या उपनिदेशक के रूप में कई देशो के साथ अवरोध उत्पन्न करता है। क्योकि बुध को सानिध्य का दोष उत्पन्न हो जाता है।
यदि शुक्र द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका की विदेश यात्रा तो होती है, किन्तु यह यात्रा कष्टप्रद रहती है। जबकि शुक्र दशम भाव में हो तो यात्रा लाभदायक रहती है।
यदि गुरु अष्टम या द्वादश भाव में, शुक्र षष्ठम या द्वादश भाव में तथा बुध षष्ठम या अष्टम भाव में हो तो जातक या जातिका की विदेश यात्रा योग होता है। उपरोक्त के अलावा यदि दशम भाव में तीन या चार ग्रह एक साथ हो तो भी जातक या जातिका की विदेश यात्रा योग होता है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
वृश्चिक लग्न और विदेश यात्रा योग
यदि चन्द्र द्वादश भाव में हो तो जातक या जातिका खूब विदेश यात्रायें करता है, किन्तु साथ में शुक्र भी हो या शुक्र केंद्र त्रिकोण में हो तो यात्रायें लाभदायक रहती है।
यदि मंगल या बुध द्वादश भाव में हो तथा शुक्र षष्ठम या अष्टम भाव में हो तो जातक या जातिका को सामुद्रिक यात्रायें करने के अवसर प्राप्त होते है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
धनु लग्न और विदेश यात्रा योग
यदि चन्द्र नवम या द्वादश भाव में, सूर्य अष्टम या द्वादश भाव में तथा मंगल पंचम, अष्टम या नवम भाव में हो तो जातक या जातिका को विदेश यात्रायें करता है।
सूर्य चन्द्र या सूर्य मंगल या चन्द्र मंगल या सूर्य चन्द्र मंगल की युति या आपस में दृष्टि सम्बन्ध हो तो जातक या जातिका को विदेश यात्रायें करता है। यह यात्रा जल व वायु दोनों ही प्रकार के मार्गो से हो सकती है।
यदि गुरु अष्टम भाव में और चन्द्र लग्न भाव में हो तो जातक या जातिका जल मार्ग से यात्रा करता है। किन्तु उसके साथ कोई अन्य ग्रह हो तो यात्रा का स्वरुप बदल जाता है। गुरु नवम भाव में व सूर्य द्वादश भाव में हो तो भी यही फल होता है।
यदि शुक्र दशम भाव में सूर्य, चन्द्र, मंगल या गुरु से प्रभावित हो तो जातक या जातिका मात्र ऐशो-आराम, घूमने-फिरने अर्थात आनंद के लिए विदेश यात्रा है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
मकर लग्न और विदेश यात्रा योग
यदि तृतीय, षष्ठम व द्वादश भाव में तीन चार या इससे अधिक ग्रह हो तो जातक या जातिका अनेक बार विदेश यात्रायें करता है।
यदि अष्टम भाव में सूर्य केतु के साथ अन्य कोई एक या दो ग्रह हो या द्वादश भाव में गुरु केतु के साथ अन्य कोई एक या दो ग्रह हो तो जातक या जातिका विशेष उपलब्धियों के कारण विदेश यात्रायें करता है।
यदि सूर्य द्वादश भाव में और गुरु अष्टम भाव में या सूर्य नवम भाव में और बुध अष्टम भाव में या गुरु
नवम भाव में और बुध द्वादश भाव में. इन तीन प्रकार के योगादि में से एक भी योग हो तो जातक या जातिका को विदेश यात्रायें करने के अवसर मिलता है।
सूर्य शनि, बुध शनि या गुरु शनि का युति सम्बन्ध किसी ना किसी प्रकार से अष्टम भाव, नवम भाव या द्वादश भाव से हो तो जातक या जातिका को विदेश यात्रा करने का अवसर मिलता है।
केंद्र या त्रिकोण में षष्ठम, अष्टम, नवम या द्वादश भाव के स्वामियों के साथ हो तो जातक या जातिका को विदेश यात्रायें करने के अवसर मिलता है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
कुम्भ लग्न और विदेश यात्रा योग
जन्मपत्रिका के अष्टम, नवम, द्वादश या लग्न भाव में बुध, शनि या शुक्र, शनि या चन्द्र, शनि की युति हो तो जातक या जातिका को अनेकों बार विदेश यात्रायें करने का अवसर मिलता है। किन्तु उसे ये सौभाग्य 54-56 वर्षायु के बाद प्राप्त होता है।
बुध, शनि या शुक्र तीनो की युति या दृष्टि सम्बन्ध हो तो जातक या जातिका अनेकों बार विदेश यात्रायें करता है। तथा प्रत्येक यात्रा से उसे लाभ प्राप्त होता है।
यदि दशम भाव में शुक्र हो तो जातक या जातिका शौकिया तौर पर मौजमस्ती के लिए विदेश यात्रा करता है, लेकिन ये यात्रा सिमित होती है।
बुध यदि स्वग्रही हो तो वायुयान से यात्रा होती है। तथा शुक्र या चन्द्र स्वग्रही या उच्च के हो तो यात्रा समुन्द्र मार्ग से होती है।
मंगल द्वादश और शुक्र अष्टम भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है, किन्तु उसका कारण कोई रोग या अन्य कोई परेशानी होती है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
मीन लग्न और विदेश यात्रा योग
मंगल अष्टम या द्वादश भाव में, शुक्र नवम, दशम या द्वादश भाव में, शनि अष्टम या नवम भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा करता है।
मंगल शुक्र या मंगल शनि या शुक्र शनि की युति केंद्र त्रिकोण में हो तो जातक या जातिका अनेकों बार विदेश यात्रायें करता है। मंगल शुक्र शनि इन तीनो की युति होने पर भी जातक या जातिका अनेकों बार विदेश यात्रायें करता है।
यदि चन्द्र अष्टम व शुक्र लग्न में हो तो जातक या जातिका अपने परिवार सहित मौजमस्ती के लिए विदेश यात्रा करता है। किन्तु कभी कभी ये यात्रा खतरनाक भी हो सकती है।
गुरु अष्टम, नवम या द्वादश भाव में हो शुक्र, मंगल, शनि लग्न भाव में हो तो जातक या जातिका विदेश यात्रा का शौकीन होता है। किन्तु यह यात्रा प्रायः धार्मिक या सामाजिक कारणों से होती है।
शुक्र यदि द्वादश भाव में हो तथा गुरु की युति या दृष्टि सम्बन्ध अष्टम नवम दशम या द्वादश भाव पर हो तो जातक या जातिका अनेकों बार विदेश यात्रायें करता है। यह यात्रा व्यावसायिक कारणों से होती है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रहों के योग पर निर्भर करता है।
विशेष :- यदि जन्मपत्रिका में तीन या इससे अधिक ग्रह उच्च या स्वराशि या मित्र राशि के हो तो जातक या जातिका किसी ना किसी कारण से विदेश यात्रा करता है।
यदि केंद्र त्रिकोण के स्वामियों के बीच परस्पर दृष्टि, युति, स्थान परिवर्तन या विपरीत राजयोग बनाते हो तो भी जातक या जातिका को विदेश यात्रा के अवसर प्राप्त होते है।
यदि पंचमहापुरुष योगो में से एक भी योग केंद्र भाव में बनता है तो जातक या जातिका को विदेश जाने का अवसर मिलता है। कारण ग्रह गोचर के योग पर निर्भर करता है।
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